जाब भी ये गाना सुनता हूँ हमरे अज़ीज़ रेहान की दास्ताँ याद अ जाती है
janab दिल्ली का रहने वाला है रोजाना की तरह तेयार होकर जनाब कालेज के लिए घर से निकले मंदी हाउस बस स्टाप पर बस का इंतज़ार कर रहे थे तभी एक चेहरा उन्हें नज़र आया देखते ही रह गए तभी अचानक बस आई और वो चेहरा भीड़ में कहीं गुम हो गया उसको ढूँढ़ते रहे और अपनी बस भी मिस कर दी कालेज में दोस्तों को बताया तो दोस्तों ने जब कर मजाक बनाया
शाम को घर लोटे और उस दिन कहीं नही गए कोशिश की धयान कहीं और लगाने की मगर वो चेहरा निगाहों से हटता ही नही था जनाब रात भर नही सोये
कुछ दिनों तक एसा चलता रहा दिन बीतते गये अम्मी ने कहा भोपाल चले जाओ खाला के यहाँ जनाब भोपाल आए हमसे युही एक दिन न्यू मार्केट में मुलाकात हुई जनाब ने अपनी दस्ताने हाल सुनाया सुन कर लग रहा था मामला संगीन है
हमने कहा कल लेक पर मिलो तुम्हे भोपाल सुन्दरता से रूबरू करते है कहकर उन्हें रुक्सत किया अगले दिन मिले तो बडेखुश नज़र आ रहे थे
पुचा तो कहने लगे आइये आपको आज हम दावत देते है हमे कहा भाई ये उजड़ा हुआ रेगिस्तान अचानक हिंदुस्तान में केसे तब्दील हो गया
जनाब ने फ़रमाया की आज तो ईद है चाँद आज दोबारा नजर आया जो है
हमने कहा मिया ईद को तो काफी वक्त है आप ने कोण सा चाँद देख लिया है
बोले वही चेहरा हमे कहा मिया मरोगे ये भोपाल है यहाँ सभी लोग एक जेसी शक्ल के होते है जनाब मुस्कुराने लगे काफी अरसे बाद उनके चेहरे पे मुस्कान देखे दिल कुश हो गया
कहने लगे अब तो चाँद को तलासकर उनसे अपनी मोह्हबत का इकरार करेंगे
हमे कहा मिया ये चाँद वांड का चक्कर छोड़ो और दिल्ली वापस लोट जाओ तो खेर है
जनाब जीज़ पकड लिए और आज दो सालों से उस अनजाने की तलास में भोपाल की गलिओं की खाक चन रहे है
आपसे गुजारिश है की अगर आपको वो चेहरा कही नजर आए तो इत्तेला करें
पहेचन है
सर पे सुन्हेरे घने रेशम से मुलायम बाल
बड़े बड़े कजरारे नेंन
गुलबी लब
Monday, July 28, 2008
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